कुंडली में ग्रहण दोष कैसे बनता है? जाने राहु-केतु के अशुभ योगों का प्रभाव
वैदिक ज्योतिष में ग्रहण दोष एक गंभीर अशुभ योग माना जाता है। यह दोष मुख्य रूप से राहु और केतु इन दो छाया ग्रहों की स्थिति और उनके द्वारा अन्य ग्रहों को पीड़ित करने पर बनता है। ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा के ग्रहण को अशुभ घटना मानी जाती है। जब कुंडली में सूर्य या चंद्रमा, राहु-केतु के साथ अशुभ स्थिति में होते हैं, तो यह एक प्रकार का ‘सूक्ष्म ग्रहण’ कुंडली पर लगा देता है, जिसे हम ‘ग्रहण दोष’ कहते हैं।
ग्रहण दोष शांति का सर्वोत्तम और प्रभावी उपाय उज्जैन में ग्रहण दोष निवारण पूजा कराना माना गया है। भगवान महाकाल की कृपा से यहाँ की गई पूजा का प्रभाव कई गुना अधिक होता है। पंडित जी विशेष मंत्रोच्चारण, हवन और यज्ञ के द्वारा राहु-केतु व सूर्य-चन्द्रमा का दोष शांत करते हैं।
Contents
- 1 कुंडली में ग्रहण दोष का ज्योतिषीय निर्माण: सूर्य-चंद्र पर राहु/केतु की छाया का गहरा प्रभाव?
- 2 सूर्य ग्रहण दोष कैसे बनता है? जाने इसकी विशेषताएँ
- 3 चंद्र ग्रहण दोष कैसे बनता है और इसकी विशेषताएँ क्या है?
- 4 कैसे बनता है कुंडली में ग्रहण दोष? राहु-केतु के साथ ग्रहों की स्थिति
- 5 ग्रहण दोष शांति के 7 शक्तिशाली और प्रभावी उपाय कौन-कौन से है?
- 6 उज्जैन में ग्रहण दोष पूजा क्या है? जाने पूजा विधि और स्थान की जानकारी
- 7 उज्जैन में कैसे कराएँ ग्रहण दोष पूजा बुकिंग?
कुंडली में ग्रहण दोष का ज्योतिषीय निर्माण: सूर्य-चंद्र पर राहु/केतु की छाया का गहरा प्रभाव?
कुंडली में ग्रहण दोष तब बनता है जब सूर्य या चंद्रमा राहु/केतु के साथ युति करते हैं या ग्रहण काल में जन्म होता है। सूर्य पर राहु/केतु का प्रभाव सूर्य ग्रहण दोष बनाता है, जबकि चंद्रमा पर प्रभाव चंद्र ग्रहण दोष उत्पन्न करता है। राहु और केतु छाया ग्रह हैं, जो सूर्य-चंद्र की शुभता को कम या नष्ट करते हैं। यह दोष जीवन में मानसिक तनाव, करियर में अस्थिरता, पारिवारिक कलह और स्वास्थ्य समस्याएँ लाता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, यह दोष ग्रहण काल (जब सूर्य-चंद्र राहु/केतु के बीच होते हैं) में जन्म लेने से या युति से बनता है। पौराणिक कथाओं में, ग्रहण राहु के अमृत चुराने की घटना से जुड़ा है, जहां राहु सूर्य-चंद्र को निगलने का प्रयास करता है।
सूर्य ग्रहण दोष कैसे बनता है? जाने इसकी विशेषताएँ
- सूर्य-राहु युति: आत्मविश्वास की कमी, नेतृत्व में असफलता, और पिता से विवाद तथा पिता के साथ संबंधों में तनाव बना रहता है।
- सूर्य-केतु युति: आध्यात्मिक भटकाव, स्वास्थ्य समस्याएँ (हृदय और आँखों से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएँ), आत्मविश्वास की कमी और सार्वजनिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचना आदि परेशानियाँ बनी रहती है।
- ग्रहण काल जन्म: बार-बार असफलता और मानसिक तनाव तथा सरकारी क्षेत्र में नौकरी या व्यवसाय में रुकावटें आती है।
सूर्य ग्रहण दोष के दुष्प्रभावो और अशुभ दृष्टि से बचने का सबसे अच्छा और सरल उपाय है उज्जैन में सूर्य ग्रहण दोष पूजा वहाँ के अनुभवी पंडित जी से कराना।
चंद्र ग्रहण दोष कैसे बनता है और इसकी विशेषताएँ क्या है?
- चंद्र-राहु युति: इस दोष के कारण भावनात्मक अस्थिरता, अवसाद, और माता से तनाव या माँ के स्वास्थ्य में परेशानी आदि देखने को मिलता है।
- चंद्र-केतु युति: पारिवारिक कलह, नींद की कमी और चिंता का बने रहना इस दोष के प्रभाव के कारण होता है।
- ग्रहण काल जन्म: निर्णय लेने में भ्रम और मन की अस्थिरता के कारण निर्णय लेने में गलतियाँ होना चन्द्र ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव है।
यह दोष व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार के संकट और बाधा उत्पन्न कर सकते है, इसलिए समय रहते इस दोष का निवारण कराना आवश्यक है। उज्जैन में चन्द्र ग्रहण दोष निवारण पूजा ही इस दोष का एकमात्र रामबान उपाय है।
कैसे बनता है कुंडली में ग्रहण दोष? राहु-केतु के साथ ग्रहों की स्थिति
ग्रहण दोष केवल राहु-केतु की उपस्थिति से नहीं, बल्कि उनके द्वारा अन्य ग्रहों को अपनी ओर खींचने (युति) या देखने (दृष्टि) से बनता है। इसके निर्माण के मुख्य तरीके इस प्रकार हैं:
1. सूर्य या चंद्रमा पर राहु-केतु की सीधी दृष्टि
जब कुंडली के किसी भी भाव में सूर्य और राहु या सूर्य और केतु एक साथ बैठते हैं, तो यह ‘सूर्य ग्रहण योग’ बनाता है। इसी प्रकार, चंद्रमा और राहु या चंद्रमा और केतु की युति ‘चंद्र ग्रहण योग’ का निर्माण करती है। यह सबसे प्रबल ग्रहण दोष माना जाता है।
2. राहु-केतु की पाप दृष्टि
यदि राहु या केतु कुंडली में सूर्य या चंद्रमा पर अपनी प्रभावी दृष्टि (7वीं दृष्टि) डाल रहे हों, तो भी ग्रहण दोष का प्रभाव माना जाता है। यह एक अदृश्य ग्रहण की तरह काम करता है।
3. ग्रहों की अशुभ स्थिति
यदि राहु-केतु किसी अन्य ग्रह (जैसे बृहस्पति, शुक्र, मंगल) के साथ युति बना रहे हों और वही ग्रह सूर्य या चंद्रमा को पीड़ित कर रहे हों, तो भी ग्रहण दोष के दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते है।
ग्रहण दोष शांति के 7 शक्तिशाली और प्रभावी उपाय कौन-कौन से है?
- महामृत्युंजय मंत्र का नियमित जाप: प्रतिदिन “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे…” मंत्र का 108 बार जाप करने से ग्रहण के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। इस मंत्र के जाप से दोष से शांति प्राप्त होती है।
- तांबे के बर्तन में जल दान: प्रतिदिन सूर्योदय के समय तांबे के लोटे में जल भरकर सूर्य देव को जल अर्पित करें। यह सूर्य ग्रहण दोष के लिए रामबाण उपाय है।
- ग्रहण काल में विशेष सावधानी: जब भी खगोलीय ग्रहण हो, उस दौरान मंत्र जाप करें, भोजन न करें और गर्भवती महिलाएँ विशेष सावधानी रखें ।
- राहु-केतु के मंत्र: ग्रहण दोष से बचने के लिए “ॐ रां राहवे नमः” और “ॐ कें केतवे नमः” मंत्र का जाप करें। मंत्र जाप करने से इन ग्रहों की शुभता प्राप्त होती है।
- दान का महत्व: ग्रहण के बाद काले तिल, उड़द की दाल, लोहा या नीले रंग की वस्तुओं का दान करें।
- रत्न धारण करने से पहले सावधानी: गोमेद (हेसोनाइट) रत्न राहु के लिए और विडाल आँख (कैट्स आई) केतु के लिए है, परंतु बिना ज्योतिषी की सलाह के इन्हें कभी धारण न करें।
- शिव आराधना: भगवान शिव राहु-केतु के स्वामी माने जाते हैं। नियमित रूप से शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और रुद्राभिषेक करवाएं।
उज्जैन में ग्रहण दोष पूजा क्या है? जाने पूजा विधि और स्थान की जानकारी
- पूजा के प्रमुख स्थान: महाकालेश्वर मंदिर, क्षिप्रा नदी घाट, सूर्य/चंद्र मंदिर।
- पूजा-विधि:
- सबसे पहले क्षिप्रा नदी में स्नान करें।
- संकल्प और गणेश पूजा से पूजा प्रारम्भ होती है।
- पूजा में सूर्य/चंद्र-राहु/केतु पूजा: मंत्र जाप कराये जाते है।
- महामृत्युंजय जाप का जाप कराया जाता है।
- पूजा के अंत में विसर्जन और दान दिया जाता है।
उज्जैन में कैसे कराएँ ग्रहण दोष पूजा बुकिंग?
यदि आप ग्रहण दोष से प्रभावित हैं, तो आज ही उज्जैन के अनुभवी पंडित जी से संपर्क करें, शुभ मुहूर्त चुनें, और उज्जैन में ग्रहण दोष पूजा कराएं। यह पूजा न केवल दोष निवारण है, बल्कि आत्म-जागृति और शांति का प्रतीक है। अभी नीचे दिये गए नंबर पर कॉल करें और पंडित जी से संपर्क करें।